
मैकमहोन रेखा - McMahon Line
मैकमहोन रेखा McMahon line
मैकमहोन रेखा भारत तथा चीन के बीच की सीमा रेखा है, जो हिमालय की चोटियों से होती हुई पश्चिम में भूटान से 890 किमी तथा पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 किमी में फैली है। इस सीमा रेखा को सर हेनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया है। यह सन 1914 में हुई शिमला समझौते के बाद अस्थित्व में आयी।
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हेनरी मैकमहोन |
मैकमहोन रेखा का इतिहास
मैकमहोन रेखा चीन के तिब्बत क्षेत्र तथा भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में 1914 के शिमला समझौते के पश्चात बनायीं गयी थी। उस समय ब्रिटिश उपनिवेश भारत के प्रशासक विन्सेंट आर्थर हेनरी मैकमहोन तथा तिब्बत के प्रतिनिधि लोचन सत्रा ने मैकमहोन रेखा के दस्तवेजो पर हस्ताक्षर किये। जिसको पहले भारत सरकार द्वारा माना नहीं गया, क्योकि यह 1907 में हुए एंग्लो रूसी सम्मलेन जो पर्शिया (ईरान), अफगानिस्तान तथा तिब्बत को लेकर हुआ था, से असंगत था अर्थात उस सम्मलेन के विपरीत हुआ था। तथा मैकमहोन रेखा करार इतिहास के पन्नो में कहीं दब कर रह गया था। सन 1935 में ब्रिटिश इंडिया के प्रसाशनिक अधिकारी ओलाफ करोई ने शिमला समझौते तथा मैकमहोन रेखा के आधिकारिक नक्शे को प्रकाशित करने के लिए सरकार को सहमत कर लिया था।
मैकमहोन रेखा विवाद-
भारत ने तो इसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा मान लिया, लेकिन चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद शिमला समझौते को मानने से मना कर दिया, उसके अनुसार तिब्बत को सीमाओं पर निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए उसके द्वारा किया गया कोई भी समझौता मान्य नहीं होगा। भारत चीन युद्ध 1962 में चीन ने भारत के इस हिस्से पर कब्ज़ा भी कर लिया था परन्तु युद्ध विराम पर अपनी सेना को वापस बुला लिया परन्तु लद्दाख में स्थिति अक्साई चिन पर कब्ज़ा कर लिया तथा वहां पर लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल तक अपना अधिकार घोषित करता आ रहा है। चीन में अरुणांचल को दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। तिब्बत के 14 वे दलाई लामा ने वर्ष 2003 में इसे तिब्बत का हिस्सा बताया, परन्तु वर्ष 2007 और 2008 में उन्होंने माना कि अंग्रेजो और तिब्बत के बीच मैकमहोन रेखा पर हस्ताक्षर किये गए थे और यह भारत का क्षेत्र है।
इस सीमा विवाद को आज तक सुलझाया नहीं गया है। जितने भी बार सीमाओं को लेकर चर्चा हुई है, हर बार वार्ता यथा स्थिति पर खत्म हुई।भारत तथा चीन के बीच 1954 में पंचशील समझौता हुआ परन्तु उसके बाद 1962 का युद्ध हो गया स्थिति तनावपूर्ण बनी रही। भारतीय पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के पश्चात फिर एक बार भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने चीन से संबंध सुधारने के लिए चीन से दोस्ती का हाथ बड़ाया, परन्तु 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में चीन ने पाकिस्तान का एकतरफा सहयोग किया। जिससे कि सीमाओं पर तनाव खत्म नहीं हुआ। भारत और चीन की सीमाओं के विवाद को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान ने भी अहम भूमिका निभाई है। 1962 के भारत चीन युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने कराकोरम को चीन को देकर उस विवाद को अंतर्राष्ट्रीय बना दिया तथा उसने भी चीन के साथ सीमाओं के विवाद को बढ़ावा दिया। 70 के दशक में भारत और चीन के संबंधो में कुछ नरमी आयी परन्तु फर कुछ वाक्यों ने चीन और भारत के बीच तनाव पैदा कर दिया, और तब से अभी तक सम्बन्धो में सुधार देखने को नहीं मिला। भारत और चीन की आधिकारिक तौर पर कई मीटिंग हुई स्थिति नरम होती दिखी, परन्तु समस्या हमेशा तिब्बत तथा सीमाओं पर आकर विवादित हो जाती है।
भारत तथा चीन के कुछ आधिकारिक दौरे इस प्रकार है -
भारत तथा चीन के कुछ आधिकारिक दौरे इस प्रकार है -
- पहली बार 1966 में चीन के राष्ट्रपति ने 3 दिन की आधिकारिक यात्रा की।
- 1999 में भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने चीन की यात्रा की तथा उच्चस्तरीय वार्तालाप को अंजाम दिया।
- वर्ष 2000 में भारतीय राष्ट्रपति के. आर. नारायण ने चीन की यात्रा कर द्विपक्षीय वार्तालाप की।
- 2001 में चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की।
- 2002 में चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग ने भारत की यात्रा की।
- वेन जियाबो ने 2005 व 2010 में भारत की यात्रा की।
- प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सन 2008 में चीन की यात्रा की।
- 2014, 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आये।
इन सभी दौरों के पश्चात भी हम अक्सर सीमाओं पर सेनाओ को आपस में लड़ते हुए पाते है।
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