
प्राचीन भारत में धार्मिक आंदोलन (Religious Movement of Ancient India)
प्राचीन भारत में धार्मिक आंदोलन
छठी शताब्दी ई.पू. के आसपास समाज के बौद्धिक रूप से जागृत वर्ग ने अनुभव किया कि यज्ञों की अपेक्षा आचार-विचार की शुद्धता तथा कर्म की पवित्रता ही धर्म है। इस काल धार्मिक दृष्टि से देवी-देवताओं अनेक स्वरूपों में विधमान थे और उनकी उपासना विधि भी अलग-अलग थी। इससे मनुष्य के आत्मविश्वास, पुरुषार्थ, परिश्रम तथा व्यक्तित्व का नाश हो रहा था। इस काल में धार्मिक अनुष्ठान में पेचदगियों के कारण ब्राह्मणों का आधिपत्य स्थापित होने लगा जो दूसरे वर्णों, खासकर क्षेत्रियों को पसंद नहीं आया। इसी कारण बौद्ध धर्म और जैन धर्म शुरू किये गए। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये दोनों ही धर्म क्षत्रियों द्वारा प्रारम्भ किये गये।
बौद्ध धर्म-
महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय-
- महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु (नेपाल में ) के समीप लुम्बिनी ग्राम में हुआ था।
- इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम महामाया था।
- इनके जन्म के 7वें दिन ही इनकी माता का देहांत हो गया था। अतः इनका पालनपोषण इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था।
- `16 वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा नामक राजकुमारी से हुआ।
- 28 वर्ष की उम्र में इनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ।
- 29 वर्ष की आयु में उन्होंने सत्य की खोज के लिए गृह त्याग कर दिया।
- 6 साल अलग अलग स्थानों में विचरण करने के बाद 35 वर्ष की आयु में गया (बिहार) में उरुवेला नामक स्थान पर पीपल वृक्ष के नीचे, वैशाख पूर्णिमा की रात्रि में समाधिस्थ अवस्था में इनको ज्ञान प्राप्त हुआ।
- महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश (प्रवचन) सारनाथ में दिया।
- 483 ई.पू. में 80 वर्ष की आयु में महात्मा बुद्ध का देहांत खुशीनगर में हुआ। उनके देहांत को महापरिनिर्वाण भी कहा जाता है।
बुद्ध की शिक्षाएं-
चार आर्य सत्य-
- महात्मा बुद्ध के अनुसार जीवन में दुःख ही दुःख हैं, अतः क्षणिक सुखों को सुख मानना अदूर्दर्शिता है।
- महात्मा बुद्ध के अनुसार दुःख कारण तृष्णा है। इन्द्रियों को जो वस्तुएं प्रिय लगती हैं, उनको प्राप्त करने की इच्छा ही तृष्णा है और तृष्णा का कारण अज्ञान है।
- महात्मा बुद्ध के अनुसार दुःखों से मुक्त होने के लिए उसके कारण का निवारण आवश्यक है। अतः तृष्णा पर विजय प्राप्त करने से दुःखों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
- महात्मा बुद्ध के अनुसार दुःखों से मुक्त होने अथवा निर्वाण प्राप्त करने के लिए जो मार्ग है, उसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है।
महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेशों में कर्म के सिद्धांत पर बहुत बल दिया है। वर्तमान का निर्णय भूतकाल के कार्य करते हैं। महात्मा बुद्ध ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने भाग्य का निर्माता माना है। उनका कहना था की अपने पूर्व कर्मो का फल भोगने के लिए मानव को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। महात्मा बुद्ध ने बताया कि निर्वाण की प्राप्ति प्रत्येक मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य है। इससे उनका तात्पर्य यह था कि व्यक्ति को इच्छा, भोग-विलास का परित्याग कर देना चाहिए। महात्मा बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व को न स्वीकार किया है न ही नाकारा है। महात्मा बुद्ध ने वेदो की प्रमाणिकता को स्पष्ट रूप से नकारा है। महात्मा बुद्ध समाज में उच-नीच के विरोधी थे।
बौद्धिक साहित्य-
त्रिपिटक बौद्ध धर्म की धार्मिक किताब है। बुद्ध पाठ में, सबसे प्रसिद्ध त्रिपिटक है, जिसका कि नीचे उल्लेख किया गया है-:
विनय पिटक- इसमें संघ सम्बंधित नियमों, दैनिक आचार-विचारों व विधि-निषेधों का संग्रह है। बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं का लेखा-जोखा भी इसमें दिया गया है।
सुत्त पिटक- इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांत व उपदेशों का संग्रह है।
अभिधम्म पिटक- यह पिटक प्रश्नोत्तर क्रम में है और इसमें दार्शनिक सिद्धांतों का संग्रह है।
बौद्ध महासंगीतियां-
संगीति | समय | स्थल | शासक |
प्रथम बौद्ध संगीति | 483 ई.पू. | सप्तपर्णि गुफा (राजगृह, विहार) | अजातशत्रु (हर्यक वंश ) |
द्वितीय बौद्ध संगीति | 383 ई.पू. | वैशाली (विहार) | कालाशोक (शिशुनाग वंश) |
तृतीया बौद्ध संगीति | 250 ई.पू. | पाटलिपुत्र (मगध की राजधानी ) | अशोक (मौर्य वंश ) |
चतुर्थ बौद्ध संगीति | 72 ई.पू. | कुण्डलवन (कश्मीर) | कनिष्क (कुषाण वंश ) |
जैन धर्म-
जैन धर्म का संस्थापक ऋषभदेव को माना जाता है, जो कि पहले जैन तीर्थंकर भी थे। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए, जो निम्न लिखित हैं-:
21.नेमिनाथ, 22.अरिष्टनेमी, 23.पाशर्वनाथ 24. महावीर स्वामी
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। इनको जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है।
महावीर स्वामी का जीवन परिचय-
- महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुण्डलग्राम में 599 ई.पू. में हुआ था।
- इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला था।
- महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था।
- महावीर स्वामी, सत्य की खीज के लिए 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सन्यासी हो गए थे।
- महावीर स्वामी को 12 वर्ष की गहन तपस्या के पश्चात जंभियग्राम के निकट त्रिजुपालिका नदी के तट पर एक वृक्ष के नीचे सर्वोच्च ज्ञान (कैवल्य) की प्राप्ति हुई।
- कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात उन्हें कई नामों से जाना जाने लगा। यथाः कैवलिन, जिन (विजेता), महावीर, अर्हत (योग्य), आदि
- लगभग 72 वर्ष की आयु में 527 ई.पू. में महावीर स्वामी की राजगृह के समीप पावापुरी में मृत्यु हो गयी।
- महावीर की मृत्यु के बाद, चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में गंगा घाटी में एक गंभीर अकाल पड़ा था। इस अकाल के कारणजैन धर्म दो पंथ में विभाजित हो गया। श्वेतांबर (इस पंथ को मानने वाले श्वेत वस्त्र धारण करते हैं ) और दिगम्बर (इस पंथ को मानने वाले वस्त्रो का परित्याग करते हैं ) थे।
- जैन धर्म ईश्वर को सृष्टि के रचियता एवं पालनकर्ता के रूप में स्वीकार नहीं करता।
- जैन धर्म आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है। महावीर स्वामी के अनुसार आत्मा स्वभाव से निर्विकार एवं सर्वद्रष्टा है, किन्तु मोह के बंधन व क्रम जाल उसकी शक्ति को क्षीण कर देते हैं।
- जैन धर्म के अनुसार संसार दुःखों से परिपूर्ण है। अतः व्यक्ति को सांसारिक सुखों का त्याग कर निवृति तथा तपस्या का मार्ग अपनाकर संपूर्ण ज्ञान प्राप्त प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
- जैन धर्म कर्म को प्रधानता देता है।
- जैन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास करता है। जैन धर्म के अनुसार मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करके ही जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हुआ जा सकता है।
- जैन धर्म अहिंसा पर अत्यधिक बल देता है। जैन धर्म के अनुसार जड़ व चेतन दोनों प्रकार की वस्तुओं में जीव का अस्तित्व होता है।
संगीति | समय | स्थल |
प्रथम बौद्ध संगीति | 322 से 298 ई.पू. | पाटलिपुत्र |
द्वितीय बौद्ध संगीति | 512 ई.पू. | वल्लभी |
सिद्धांत अथवा अगामा जैन धर्म की धार्मिक पुस्तकें है।
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