
अगस्त क्रांति आजादी का अंतिम आंदोलन
अगस्त क्रांति-
भारत की आजादी की अंतिम लड़ाई थी- भारत छोड़ो आंदोलन/क्विट इंडिया मूवमेंट जिसे अगस्त की क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। क्या है अगस्त क्रांति ? अगस्त क्रांति क्यों हुई थी? इन सब सवालों के जवाब भारत की आजादी के इतिहास के पन्नो में अंकित है। भारत की आजादी की जंग 1857 की क्रांति से प्रारम्भ हो चुकी थी, एक लंबी जंग लड़नी थी और भारत की आजादी के इतिहास की पुस्तक में अनेक पृष्ठों जोड़ना था। भारत की आजादी में एक नाम हमेशा से ही सर्वोच्च स्थान पर रहा है, जिन्होंने अनेक आंदोलनों की शुरवात की और उन्हें ही अगस्त क्रांति का जनक भी कहा जा सकता है और वो है राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गाँधी। 09 अगस्त 1942 को प्रारम्भ होने के कारण इसे अगस्त क्रांति के नाम से जाना जाता है, और इस आंदोलन का भारत की आजादी में एक अहम् योगदान रहा है। महात्मा गाँधी जी का प्रसिद्ध नारा "करो या मरो" इसी क्रांति में दिया गया था।
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अगस्त क्रांति आजादी का अंतिम आंदोलन |
अगस्त क्रांति क्यों हुई?
द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था तथा अंग्रेजो ने यह वादा किया की अगर भारतीय इस युद्ध में ब्रिटिश साम्रज्य का सहयोग करेंगे तो भारत को आजादी दे दी जायेगी ऐसा ही कुछ हुआ था प्रथम विश्व युद्ध के समय जिसके कारण महात्मा गाँधी को "भर्ती कराने वाला सार्जेंट" कहा जाने लगा। द्वितीय विश्व युद्ध में जब ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण हुआ तो भारत ने इस वादे पर ब्रिटिश साम्राज्य का सहयोग किया कि युद्ध समाप्ति पर भारत को स्वतंत्र कर दिया जायेगा। परन्तु आदतों से मजबूर ब्रिटिश सरकार अपने वादे से मुकर गयी जिससे भारतीयों में आक्रोश की लहर दौड़ गयी और अगस्त क्रांति की शुरवात हुई।
अगस्त क्रांति की शुरवात-
04 जुलाई 1942 जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया "अगर अंग्रेज भारत नहीं छोड़ते तो उनके खिलाफ देशव्यापी पैमाने पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाएगा। परन्तु कांग्रेस के सभी लोग इस प्रस्ताव के साथ नहीं थे। दो अलग अलग विचारधारों के कारण कांग्रेस एक बार फिर से बिखर रही थी। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कांग्रेस छोड़ दी। मौलाना आज़ाद तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रारम्भ से ही इस आंदोलन के लिए संशय में थे। लेकिन महात्मा गाँधी जी के आवाह्न पर ये गाँधी जी के साथ हो चले। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता जैसे सरदार बल्लभ भाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण जैसे गांधीवादी विचारधारों वाले कई क्रांतिकारियों ने महात्मा गाँधी के इस आंदोलन का खुल कर समर्थन किया। 08 अगस्त को अखिल भारतीय कोंग्रेस समिति ने मुंबई के अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास किया। हालाँकि अखिल भारतीय कांग्रेस कई पार्टियों को इस आंदोलन में शामिल करने में सफल नहीं हो पायी जिनमे मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिन्दू महासभा शामिल है। 09 अगस्त 1942 को मुंबई के एक मैदान से इस आंदोलन की शुरवात हुई और इसी कारण इस मैदान को अगस्त क्रांति मैदान कहा जाने लगा।
अगस्त क्रांति के क्या परिणाम रहे?
अगस्त क्रांति के प्रारम्भ होने के अगले दिन ही महात्मा गाँधी और कांग्रेस के सहयोगी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस क्रांति को दो भागों में बाँट कर देखा जा सकता है जिसमें पहले भाग में यह अत्यंत सरल तथा शांति पूर्ण ढंग से चला वही दुसरे भाग में यह बहुत ही हिंसात्मक रूप धारण कर चुका था। बहुत अधिक दंगे हुए सरकारी बिल्डिंग में आग लगाई गयी पोस्ट ऑफिस को तहस नहस कर दिया गया रेलवे स्टेशनो को पूरी तरह तबाह कर दिया गया। जॉन एफ रिडिक के अनुसार अगस्त क्रांति के तहत मात्र 45 दिनों में 550 पोस्ट ऑफिस, 250 रेलवे स्टेशन,तथा 85 सरकारी बिल्डिंग को तबाह कर दिया गया तथा 70 पुलिस स्टेशन में आग लगा दी गयी और 2,500 से भी अधिक टेलीग्राफ वायर को काट दिया गया ।
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